विद्वानों के सम्मान और घोषणापत्र जारी होने के साथ विश्व हिंदी सम्मेलन संपन्नहिंदी की सेवा में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले 31 विद्वानों को सम्मानित किए जाने और हिंदी के भावी विकास को सुगम बनाने के लिए दस सूत्री घोषणापत्र जारी किए जाने के साथ ही न्यूयॉर्क में आयोजित आठवां विश्व हिंदी सम्मेलन संपन्न हो गया। समापन समारोह में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के विशेष प्रतिनिधि और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष डॉ. कर्णसिंह ने विद्वतापूर्ण संबोधन दिया। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच उन्होंने हिंदी सेवियों को हिंदी के इस सबसे बड़े मंच पर सम्मानित किया और हिंदी की वैश्विक यात्रा की दिशा में निरंतर होती महत्वपूर्ण प्रगति की विश्वास भरे शब्दों में रेखांकित किया।
समारोह में मॉरीशस और नेपाल के मंत्री, विश्व हिंदी सचिवालय की महासचिव डॉ. विनोद बाला अरुण, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के मधुकर राव चौधरी और भारतीय विद्या भवन, न्यूयॉर्क के कार्यकारी निदेशक डॉ. पी जयरामन भी मौजूद थे। संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में हुए उद्घाटन सत्र से शुरू हुआ विश्व हिंदी सम्मेलन तीन दिनों तक चला और इस दौरान अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों पर शैक्षिक सत्रों का आयोजन किया गया। सम्मेलन के दौरान हिंदी भाषा के विभिन्न आयामों पर तीन प्रदर्शनियां भी लगाई गई, अनेक ग्रंथों व पत्रिकाओं का विमोचन किया गया तथा भारतीय संस्कृति की झलक देती सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन हुआ।
(15 जुलाई 2007)
सम्मेलन का घोषणापत्रसम्मानित विद्वानों की सूची
हिंदी तो विश्व मंच पर पहुंच चुकी हैः शर्माविदेश राज्यमंत्री श्री आनंद शर्मा ने न्यूयॉर्क में एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में विश्व हिंदी सम्मेलन के उद्घाटन समारोह का होना और वहां दुनिया के कई देशों के हिंदी प्रेमियों, करीब पचास देशों के राजनयिकों और अनेक देशों के मंत्रियों के एक मंच पर आकर हिंदी की आवाज बुलंद किए जाने से विश्व मंच पर हिंदी तो पहुंच चुकी है। उन्होंने कहा कि आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन का ध्येय वाक्य 'विश्व मंच पर हिंदी' साकार होता दिखाई दे रहा है। श्री शर्मा ने आश्वासन दिया कि आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन की सिफारिशों पर सरकार समुचित कार्रवाई करेगी।पत्रकारों के सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि भारत सरकार दुनिया भर के हिंदी प्रेमियों के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को मान्यता दिलाने के लिए एक विश्वव्यापी अभियान चलाएगी। सितंबर 2007 में होने वाली संयुक्त राष्ट्र की बैठक के पहले न्यूयार्क में सम्मेलन का आयोजन किया जाना इसी दिशा में एक पहल है। विदेश राज्यमंत्री ने कहा कि भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र में इस संबंध में कोई आधिकारिक प्रस्ताव पेश किए जाने से पहले कई औपचारिकताएं पूरी की जानी हैं। लेकिन सरकार इस मामले में धन की कोई कमी नहीं होने देगी।
13 जुलाई 2007
विश्व हिंदी सम्मेलन की प्रदर्शनियों का उद्घाटनविदेश राज्यमंत्री श्री आनंद शर्मा ने न्यूयॉर्क में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन से जुड़ी तीन प्रदर्शनियों का उद्घाटन करते हुए कहा कि हिंदी भाषा को सूचना प्रौद्योगिकी के साथ जोड़े जाने की जरूरत है दुनिया में जिस रफ्तार से तकनीकी प्रगति हो रही है हिंदी को भी उसके साथ कदम मिलाते हुए चलना होगा, तभी वह विश्व में उस मुकाम तक पहुंच पाएगी जिसकी वह हकदार है। श्री शर्मा ने कहा कि हिंदी न्यूयॉर्क में अपनी आवाज बुलंद करने में कामयाब रही है। विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन से हिंदी के प्रति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता बढ़ी है जो संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनने की दिशा में बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होगा। विदेश राज्यमंत्री ने कहा कि भारत सरकार इस मामले में बहुत सोच-समझकर तथा पूरी संजीदगी के साथ कदम उठा रही है और समय आने पर उनके परिणाम सामने आएंगे।श्री शर्मा ने जिन तीन प्रदर्शनियों का उद्घाटन किया उनका आयोजन भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की ओर से किया गया है। इन प्रदर्शनियों में हिंदी के अतीत, वर्तमान और भविष्य की एक समन्वित झलक दिखाने का प्रयास किया गया है। समारोह को भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के महानिदेशक पवन वर्मा ने भी संबोधित किया। श्री वर्मा ने प्रदर्शनियों के सफल आयोजन के लिए उनसे जुड़ी स्थायी समिति के सदस्यों को धन्यवाद दिया। कार्यक्रम का संचालन तकनीकविद् बालेन्दु शर्मा दाधीच ने किया। हिंदी पुस्तकों पर आधारित पहली प्रदर्शनी का आयोजन नैशनल बुक ट्रस्ट और केंद्रीय हिंदी संस्थान के माध्यम से किया गया है। इस प्रदर्शनी में विविध विषयों पर हिंदी भाषा में लिखी गई महत्वपूर्ण और चर्चित कृतियां प्रदर्शित की गई हैं। इसमें साहित्य अकादमी, राजभाषा विभाग और भारतीय प्रकाशक संघ ने भी हिस्सा लिया है। दूसरी प्रदर्शनी सूचना प्रौद्योगिकी और हिंदी पर केंद्रित है जिसमें हिंदी सॉफ्टवेयरों के क्षेत्र में हुई महत्वपूर्ण प्रगति को दिखाया गया है। तकनीकविद और पत्रकार बालेन्दु दाधीच के संयोजन में आयोजित की गई इस प्रदर्शनी में आई.सी.सी.आर., राजभाषा विभाग, सी-डैक, टी.डी.आई.एल. और नैशनल इन्फोरमेटिक्स सेंटर ने हिस्सा लिया है। इस प्रदर्शनी में इस बात को स्पष्ट किया गया है कि हिंदी में कंप्यूटर और कंप्यूटर में हिंदी का समन्वय अब न सिर्फ संभव हो गया है बल्कि हमारी भाषा में कई काल-विभाजक तकनीकी अनुप्रयोगों का विकास भी हो रहा है। प्रदर्शनी में श्रुतलेखन, लीला, मंत्र जैसे कई महत्वपूर्ण सॉफ्टवेयरों का व्यावहारिक प्रदर्शन किया गया है और आम उपयोक्ताओं को कंप्यूटर पर हिंदी में काम करने के लिए जरूरी जानकारी उपलब्ध कराई गई है। सामान्य प्रतिभागी प्रदर्शनी में रखे कंप्यूटरों में हिंदी सॉफ्टवेयरों पर खुद काम करके भी देख सकते हैं। प्रदर्शनी में इस तथ्य पर जोर दिया गया है कि सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हिंदी भाषा तेज गति से आगे बढ़ रही है। भारत की आर्थिक प्रगति और उपभोक्ताओं के बीच आई.टी. के प्रति बढ़ी जागरूकता का इसमें बहुत बड़ा हाथ है। श्री दाधीच ने बताया कि पांच-छह साल बाद विश्व में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के कंप्यूटर उपयोगकर्ताओं की संख्या अंग्रेजी को पार कर जाने के आसार हैं।भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और राष्ट्रीय अभिलेखागार की ओर से लगाई गई तीसरी प्रदर्शनी का विषय है- हिंदी की अंतरकथा- देश से परदेस तक। इस प्रदर्शनी में साहित्यिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अमूल्य और दुर्लभ दस्तावेजों का प्रदर्शन किया गया है। ये दस्तावेज हिंदी भाषा की संघर्ष भरी प्रगति की गाथा तो कहते ही हैं, भारत की स्वाधीनता के इस 60वें वर्ष में हमारी आजादी की लड़ाई से जुड़ी यादों को भी ताजा कर देते हैं। इसी प्रदर्शनी के एक खंड में विश्व के विभिन्न भागों में प्रकाशित हो रही हिंदी पत्र-पत्रिकाओं का प्रदर्शन भी किया गया।13 जुलाई 2007
विश्व हिंदी सम्मेलन का शुभारंभः संयुक्त राष्ट्र में गूंजी हिंदी की आवाज
न्यूयॉर्क। आज हिंदी भाषा के लिए एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक अवसर था, जब संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन हुआ। विश्व संस्था के इतिहास में, उसके मुख्यालय में हिंदी प्रेमियों का इतना बड़ा जमावड़ा पहले कभी नहीं हुआ था, न सिर्फ भारतीय हिंदी प्रेमियों का, न सिर्फ अनिवासी भारतीयों का, बल्कि हिंदी के प्रति प्रेम और श्रद्धा रखने वाले विदेशियों का भी। सुबह के दस बजे दर्शकों से खचाखच भरे समारोह में स्वयं संयुक्त राष्ट्र महासचिव श्री बान की मून सम्मिलित हुए और उन्होंने हिंदी भाषा के वैश्विक महत्व को स्वीकार भी किया। समारोह में मौजूद हुए हिंदी प्रेमी यह सुनकर रोमांचित थे कि श्री मून ने स्वयं हिंदी भाषा सीखी है और टूटी-फूटी बोल भी लेते हैं। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के संदेश में भी साफ कर दिया कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने के प्रयास पूरी गंभीरता और लगन के साथ चलाए जाते रहेंगे। विदेश राज्यमंत्री श्री आनंद शर्मा ने भी अपने ओजस्वी उद्बोधन में कहा कि जिन लोगों को विश्व हिंदी सम्मेलन के संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित किए जाने पर शंकाएं थीं उन्हें संयुक्त राष्ट्र महासचिव की स्वीकारोक्ति से पता चल गया होगा कि हिंदी भाषा की मजबूती और उसके प्रति जागरूकता का स्तर कितना बड़ा है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने अपने संबोधन की शुरूआत 'नमस्ते','क्या हालचाल हैं' से की। इस पर पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। उन्होंने कहा कि हिंदी एक बहुत सुंदर और अभिव्यक्ति की गहराई वाली भाषा है। यह भारतीय उपमहाद्वीप की संस्कृति और इतिहास से जुड़ी हुई है और दुनिया के कई देशों के लोगों के बीच सेतु का काम करती है। श्री मून ने कहा कि यह अपने आप में अद्वितीय है कि संयुक्त राष्ट्र का कोई महासचिव किसी भाषा से जुड़े कार्यक्रम में जाए। लेकिन वे हिंदी के प्रति श्रद्धा भाव रखते हैं इसलिए इस समारोह में सम्मिलित हुए।प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का वीडियो संदेश भी समारोह में दिखाया गया। प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में कहा कि हिंदी का कारवां कई पड़ावों, संघर्षों से गुजरते हुए आज संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय तक आ पहुंचा है। आज हिंदी पूरी दुनिया में अपनी जगह बना रही है। अमेरिका के कई स्कूल कालेजों में हिंदी का शिक्षण हो रहा है। उन्होंने कहा कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने संबंधी प्रयासों को गंभीरता के साथ चलाया जा रहा है और सरकार मॉरीशस में स्थापित किए गए विश्व हिंदी सचिवालय को प्रभावी बनाने के लिए वहां की सरकार के साथ मिलकर काम करती रहेगी। प्रधानमंत्री ने कुछ सुझाव भी दिए। उन्होंने कहा कि हिंदी को आधुनिक और विश्व भाषा बनाने के लिए हिंदी सॉफ्टवेयरों, हार्डवेयरों और वेब अनु्प्रयोगों का विकास किया जाना चाहिए। डॉ. सिंह ने यह भी कहा कि अनिवासी भारतीयों के साहित्य को भी हिंदी में आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
श्री शर्मा ने कहा कि विश्व मंच पर तो हिंदी पहुंच गई है। संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में हुआ आयोजन उसका प्रमाण है। उन्होंने कहा कि बत्तीस साल पहले भारत की पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत श्रीमती इंदिरा गांधी ने हिंदी को विश्व स्तर तक पहुंचाने की पहल की थी। आज संयुक्त राष्ट्र के प्रांगण में हिंदी विद्वानों का इतने बड़े स्तर पर जुटकर अपनी भाषा की आवाज बुलंद करना उस प्रक्रिया की एक सार्थक परिणति कहा जाएगा। श्री शर्मा ने कहा कि भारत का संविधान हर भाषा को सम्मान देता है लेकिन दुनिया में दूसरे नंबर की भाषा होने के नाते हिंदी को उसका वाजिब दर्जा मिलना ही चाहिए। हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं है बल्कि वह भारत के इतिहास,समाज और संस्कृति से जुड़ी ऐसी धरोहर है जो हमारी आजादी की लड़ाई की भाषा बनी थी। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र को हिंदी को अपनाना ही चाहिए। मुझे विश्वास है कि जब यहां तक पहुंचे हैं तो हम वहां तक (आधिकारिक भाषा) भी पहुंचेंगे।संयुक्त राष्ट्र में एकत्र हुए हिंदी विद्वानों और हिंदीप्रेमियों के माध्यम से हिंदी की आवाज आज खूब गूंजी। इतने बड़े विश्व मंच पर भारत की राजभाषा को विश्व भाषा बनाने की पहल को लेकर चर्चा हुई और विश्व संस्था का मुख्यालय हिंदीमय हो गया। समारोह में कुछ अन्य देशों के मंत्रियों की भागीदारी से कार्यक्रम का स्वरूप अंतरराष्ट्रीय हो गया।सम्मेलन को संबोधित करने वाले अन्य गणमान्य व्यक्तियों मेंअमेरिका में भारत के राजदूत श्री रणेन्द्र सेन, संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि श्री निरूपम सेन, मारीशस के शिक्षा और मानव संसाधन मंत्री श्री धरमबीर गोखुल, नेपाल के उद्योग, वाणिज्य एवं आपूर्ति मंत्री राजेन्द्र महतो और भारतीय विद्या भवन, न्यूयॉर्क के अध्यक्ष डा. नवीन मेहता शामिल थे। विदेश राज्यमंत्री श्री आनंद शर्मा ने इस अवसर पर 'हिंदी उत्सव ग्रंथ','गगनांचल'के विशेषांक और हिंदी विद्वानों की निर्देशिका का लोकार्पण भी किया।संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के सम्मेलन कक्ष-4 में आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन के पहले शैक्षिक सत्र का आयोजन भी हुआ। विषय था- संयुक्त राष्ट्र में हिंदी। इस कार्यक्रम में विश्व भर के हिंदी प्रेमियों का यह संकल्प एक बार फिर दृढ़ता के साथ दोहराया गया कि संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषाओं में विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की भाषा हिंदी को अवश्य स्थान मिलना चाहिए। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. गिरिजा व्यास ने की और उनके अतिरिक्त श्री अनंत राम त्रिपाठी, प्रो. रामशरण जोशी, डॉ. रत्नाकर पांडेय एवं श्री नारायण कुमार ने अपने विचार प्रकट किए।
शनिवार, 18 अगस्त 2007
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
1 टिप्पणी:
डा.सुधीर शर्मा
एक टिप्पणी भेजें